Thursday, November 11, 2010

त'आरुफ़

पूरे दिन क्रिकेट ग्राउंड पे बैठे बोरिंग सा मैच देख रहे थे. घर पहुंचे तो लगा आज बोरियत नहीं हुई. कारण? जनाब क्यूरेटर साहब हमारे ही देस के, यहाँ तक की हमारी ही गली के निकले. वो गली जो सृष्टि के सबसे एनिग्मेटिक केरेक्टर, अर्थात बम भोले नाथ के नाम से जानी जाती है -- बिश्वनाथ गली.

सोच ये निकल के आई कि पूरे दिन के 92 ओवर के खेल में 174 रन बनने के बावजूद जो आदमी आपकी इतनी एंटरटेनमेंट कर गया, उसमें ऐसी क्या खासमखास बात रही?

जवाब इस ब्लॉग का शीर्षक आपको बता देगा -- बनारसीयत. वो एकमात्र कला जो आपको केवल विरासत में मिल सकती है. आप उसे सेन्स ऑफ़ ह्यूमर बुला लीजिये. हम उसे कहते हैं ठलुआ बैठ के बकचोदी पेलने की, यानी ख़ाली बैठे ख़याली पुलाव पकाने और डींगें हांकने की फितरत. सैम्पल ये रहा...

"अरे दिन बहुत ख़राब हउ गुरु! उही बात भइल की भलेई ऊंट पे बैठके रेगिस्तान में जाओ, अगर दिन ख़राब होगा तो उहाँ भी पामेरियन कुत्ता काट लेगा..."

इस प्रजाति के प्राणियों से मुलाकात हुई होगी आपकी. जो जहाँ जाएगा, महफ़िल जमा देगा. हाज़िरजवाबी जिससे जलेबी देखके लार की तरह टपकेगी और सिर्फ लहजे से एक दूसरे को पहचान लिया करेगा. इसे बनारसी कहते हैं. हम भी इसी प्रजाति के एक तुच्छ, अति-सूक्ष्म भाग हैं, और अपनी बनारसीयत बिखेरने के लिए ही इस ब्लॉग का निर्माण किया है.

आशा है आने वाले समय में आपसे फिर भेंट होगी. अभी के लिए इतना सुनते जाइए की बनारसीयत के पीछे राज़ क्या है -- ये की बनारस में दो ही बिजनेस आज तक चल पाए हैं. एक हमारी शान - डी एल डब्ल्यू - और दूसरा वही - बाबा के नाम पे ठगी. और इस दूसरी कैटेगरी के लिए जो सुप्रीम टैलेंट चाहिए, उसी का नाम है...
बनारसीयत.

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